Tuesday, August 16, 2016

कुछ बातें मेरे मन की


कुछ दिनों पहले मैंने एक आलेख लिखा था और दिल्ली के दामिनी केस की चर्चा करते हुए कई सवाल रखे थे | वो आलेख जब मैंने एक पत्रिका के संपादक महोदय को भेजा तो उन्होंने ये कह कर आलेख वापस कर दिया कि आपके आलेख में बहुत पुराने विषय की चर्चा की गयी है | मैं हर वक्त सोचती रहती हूँ कि क्या उस संपादक महोदय ने सच बोला था ? क्या बलात्कार एक विषय भर है ? जो घटना एक स्त्री की मर्यादा तार-तार कर देती है और उसे जीवन भर के लिए अभिशप्त बना देती है, वह एक विषय मात्र है ?? कोई भी इतने हल्के में इस बात को कैसे ले सकता है ?
हर रोज के अखबार गैंग रेप की घटनाओं से रंगे रहते हैं
| आखिर ये कौन लोग हैं जिनके हौसले इतने बुलन्द हैं कि एक के बाद एक घटनाओं को अंजाम देते जा रहे हैं ? इन्हें ना तो प्रशासन का कोई डर है ना दण्ड का खौफ़ ! समझ में नहीं आता कि हम, मुगलकाल में रह रहे हैं या अंग्रेजी शासन में, जब हम गुलाम थे और हमारे साथ बदसलूकी होती थी | वो तो पराये थे, दूसरे देश के थे पर आज तो हम आजाद हैं और आजादी की ७०वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं फिर देश की आधी आबादी का ये हश्र क्यूँ है ?
आखिर सब किस दिशा में जा रहे हैं
| एक तरफ विकास की बात होती है तो दूसरी तरफ बेटी बचाओ बेटी पढाओ का नारा दिया जाता है | वहीं कहीं भी बेटियां सुरक्षित नहीं हैं ? इस तरह की जब भी कोई घटना घटती है तो हर राजनीतिक पार्टी अपना पल्ला झाड़ कर दूसरी पार्टियों पर आरोप-प्रत्यारोप करते दिखाई देती हैं | 
आये दिन सामूहिक बलात्कार की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं फिर उन घटनओं पर कुछ दिन तो राजनीति गर्म रहती है
, तमाम न्यूज चैनल्स पर डिबेट होते हैं फिर सब कुछ शांत हो जाता है | वहीं अगर पीडिता के नाम के आगे कोई विशेष जाती या सम्प्रदाय जोड़ दिया जाए तो वह पीड़ा पूरे देश और सभी राजनीतिक पार्टियों की हो जाती है | 
यह कौन सा कानून है
? समझ में नहीं आता | बंद कीजिये आप लोग, इतनी घिनौनी राजनीति करना |
जो पार्टी चुनाव के समय जनता को पूरी सुरक्षा का वायदा करती है
, चुन लिए जाने पर वही पार्टी अराजक तत्वों को पूरी छूट देती नजर आती है और आम आदमी डरा हुआ होता है | दिल्ली, बुलंद शहर, बरेली हो या मुरुथल इन घटनाओं के बाद आज परिस्थितियाँ यह हैं कि कोई पुरुष भी अपनी पत्नी या बेटी को लेकर घर से निकलने पर दस बार सोचेगा | अपने ही शहर में अकेले तो क्या अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ भी बाहर निकलने में हम स्त्रियों की रूह काँप रही है | तो क्या अब हमें घर पर बैठ जाना चाहिए ? बाहर नहीं निकलना चाहिए ? या घर में भी हम सुरक्षित हैं ? कई सवाल हैं,जिनके जवाब हमें चाहिए |
छुटभैयों को छोड़ दीजिए तो बड़े-बड़े राष्ट्रीय नेता जब ये कहें कि
 लड़के हैं, हो जाती है उनसे गलती तो उन्ही के शासनकाल में स्त्रियाँ कैसे सुरक्षित हो सकती हैं ? सोचने की बात है |
मैं कोई पत्रकार नहीं हूँ ना ही कोई बहुत बड़ी आंकड़ों की जानकार हूँ; पर इस देश की आधी आबादी में से एक हूँ | हम आधी आबादी के लिए कोई भी सरकार क्या कर रही है ? ये घटनाएँ राज्य ही नहीं पूरे देश में देखने को मिल रही हैं | हम आधी आबादी जो इस देश का भविष्य निर्धारित करने में अहम भूमिका निभातीं हैं, उनके भविष्य को लेकर देश-प्रदेश की सरकारें कितनी गंभीर हैं ? ये बताने की आवश्यकता नहीं है, सभी बुद्धिजीवी जानते हैं |
अंत में इतना ही कहूँगी की मुख्यमंत्री महोदय ! जिस दिन आप सभी की बहू-बेटियों को अपने घर की बहू-बेटी मान लेंगे, उस दिन कम से कम ये प्रदेश बलात्कार मुक्त हो जायेगा, यह मुझे विश्वास है | जिस तरह आप अपने घर की स्त्रियों को सुरक्षा प्रदान करते हैं, उसी तरह प्रदेश की सभी स्त्रियों की सुरक्षा का संकल्प लें और इस जिम्मेदारी को इमानदारी से निभाएं | 
प्रधान मंत्री जी से भी मेरी ये गुजारिश है कि वह देश में स्त्रियों के साथ हो रहे इस अमानुषिक अनाचार के खिलाफ कुछ कड़े कदम तुरंत उठायें
| हम जानते हैं कि आप बहुत कुछ कर सकते हैं; पर आप हमारी सुरक्षा के लिए गंभीर नहीं हैं, ऐसा हमें लग रहा है नहीं तो देश की महिलाओं के साथ इस तरह की अपमानजनक घटनाएँ नहीं घटती | अगर देश की महिलाएँ सुरक्षित नहीं हैं तो आप का यह नारा बेमानी हो जाता है कि बेटी बचाओ,बेटी पढाओ, या पढेंगीं बेटियाँ तभी तो बढ़ेगीं बेटियाँ | उस देश का विकाश कभी नहीं हो सकता जहाँ स्त्रियाँ सुरक्षित नहीं हैं | सर ! हमें आपसे बहुत उम्मीदें थीं पर अपनी सुरक्षा को ले कर हम बहुत निराश हुए हैं आप से |
पहले आप सभी
'ला एण्ड आर्डर' के रखवाले, पालन करवाने वाले, सभी मिल कर हम आधी आबादी की सुरक्षा का वचन दें नहीं तो आप हमारे बिना निर्विरोध चुन लिए जायं, ये हो नहीं सकता | आप हमें सिर्फ भयमुक्त वातावरण दीजिए, अपनी मंजिल हम स्वयं तय कर लेंगीं नहीं तो जिस दिन देश की आधी आबादी अपने पर आ जायेगी उस दिन आप की कुर्सी खिसक जायेगी और आप फिर दोबारा कुर्सी पर बैठने को तरस जायेंगे, सुन् रहे हैं ना आप लोग !!

मीना पाठक


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