Tuesday, December 30, 2014

आधी आबादी के अच्छे दिन ....आखिर कब ?


ये हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है ? कैसी शिक्षा ? कैसा विकाश और कैसे अच्छे दिन हैं ये ? जहाँ एक स्त्री सुरक्षित नहीं !!
आये दिन बलात्कार और तेज़ाब फैंकने की ख़बरें सुन कर और अखबारों में पढ़ कर मन बहुत आहत होता है | एक स्त्री
, जो जन्म देती है पुरुष को, उसी पुरुष द्वारा बर्बरता की शिकार होती है | कभी तेज़ाब फैंक कर, कभी सामूहिक बलात्कार तो कभी घरेलू हिंसा द्वारा उसे प्रताड़ित किया जाता है | जिस घर समाज या राष्ट्र में स्त्री का सम्मान नहीं वो क्या उत्थान करेगा ? वो तो पतन की दिशा में जा रहा है |
जिस देश में कन्याएं पूजी जातीं हैं उसी देश में छोटी-छोटी कन्याओं के साथ जघन्य अपराध हो रहा है | कैसे दोयम दर्जे के विचार हैं ? कैसा दोहरा व्यक्तित्व है, दोहरा चरित्र है ?...धिक्कार है ऐसे लोगों पर जो नारी देह को सिर्फ भोगना चाहते हैं, चाहे वो तीन वर्ष की बच्ची हो, बीस वर्ष की युवा या पैंतालीस वर्ष की पौढ; इन्हें तो बस् एक स्त्री देह चाहिए बस् !!
जब व्यास पीठ पर बैठे धर्म के रक्षक ये कहते हैं कि “जब आप अपनी संपत्ति, सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात, रूपये आदि अपनी तिजोरी में रखते हैं तो बेटियों को सड़क पर क्यों छोड़ देते हैं ? उन्हें रात में बाहर क्यों निकलने देते हैं ?” ऐसे वक्तव्यों से उन मानसिक रोगियों के हौसले बुलंद होते हैं, जो स्त्री देह को मात्र भोग की वस्तु समझते हैं |
पति को परमेश्वर मानने, उनकी हर आज्ञा का पालन करने और तमाम उम्र व्रत उपवास की सीख स्त्री को देने वाले ये धर्मरक्षक क्या उन अमानुषिक प्रवृत्तियों को बढ़ावा नही दे रहे जो सारे नही तो बहुत से पतियों में विद्यमान है ? जिसके कारण बहुत सी स्त्रियाँ या तो आत्महत्या कर लेती हैं या घुट-घुट कर जीने को मजबूर रहती हैं |
मंचों से जो मठाधीश सिर्फ और सिर्फ स्त्रियों को ही तमाम उपदेश देते हैं वो समाज के पुरुषों को कोई उपदेश क्यों नही देते ? उन्हें क्यों नही कहते कि बेटियाँ घर में रहें या बाहर उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखें |
क्या बेटियाँ कोई संपत्ति या चीज हैं, जो हम तिजोरी में बंद कर दे उन्हें, घर से बाहर ही ना निकलने दें ?
जब सार्वजनिक मंचों से राजनेता ये कहते हैं कि “हो जाती है लड़कों से गलती कभी कभी” तो क्या असामाजिक तत्वों के हौसले बुलंद नही होते ? इस पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री आखिर कब तक शोषित रहेगीं ?  
दिल्ली वाली घटना हो या लखनऊ वाली, दोनो घटनाओं के बारे में लोगों ने यही कहा कि
एक लड़के के साथ रात में क्यों गई ? आये दिन ये घटनाएँ होती रहती हैं हर बार एक ही बात, अकेले क्यों गई ? रात को क्यों निकली ?
जब भी इस विषय पर चर्चा होती है
; तो पुरुष वर्ग स्त्री को उसके पहनावे और उसके चरित्र पर उंगुली उठाने लगता है, वो रात को अकेले क्यों गई या अपने साथ किसी पुरुष को क्यों नही ले कर गई आदि आदि बातों की शिकायत करता हैं |
हम पूछते हैं, छोटी-छोटी बच्चियों के साथ क्यों बलात्कार होता है ? उन्हें हम कैसे कपड़े पहनाएँ ? बताए कोई |
क्या महिलाएँ रात में अपनी ही गली, मुहल्ले, शहर और देश में अकेले नही निकल सकतीं, या दिन में भी क्या वो इन सब जगहों पर सुरक्षित हैं ??
क्या आधी आबादी को कभी भी सुरक्षा मिल पाएगी ??
क्या कभी वो अपने को सुरक्षित  महसूस कर पाएंगी ??
क्या कभी उनके लिए भी अच्छे दिन आएंगे ??
बहुत से प्रश्न हैं जिनके उत्तर किसी के पास नहीं हैं | कौन देगा इन सवालों के जवाब ? कौन जिम्मेदार है इन सब घटनाओं का ? क़ानून, राजनेता, बाबाजी लोग या हम खुद ?


सोचना होगा, आत्म मंथन करना होगा कि कहीं ना कहीं इन सब घटनाओं के लिए हम भी जिम्मेदार हैं, शुरुआत हमें ही करनी होगी अपने-अपने परिवार से | हम बेटियों को शुरू से ही हजार नियम, कायदा-क़ानून, रीति-रिवाज, समझाने लगते हैं, मैं ये नही कहती कि ये हम सब गलत करते हैं; पर क्या अपने बेटों को भी कुछ समझाते हैं ? बेटी पर हर तरह की पाबंदी, पर क्या यही सब पाबंदियां बेटे पर भी लगाते हैं हम ?

क्यों ???
आखिर संतान तो दोनों हमारी ही हैं, तो दोनों के पालन-पोषण में इतना अंतर क्यों ? सोचना होगा | हमें अपने बेटों को स्त्री का सम्मान करना सिखाना होगा इसके लिए हमारे समाज के पुरुष वर्ग को आगे आना होगा | जिन घरों में पुरुष स्त्रियों का सम्मान नही करते, उनके साथ घरेलू हिंसा करते हैं, उन्हें माँ-बहन की गालियाँ देते हैं, उन्हें बात-बात पर प्रताड़ित करते हैं, घर हो या सार्वजनीन स्थल कहीं भी अपने पति होने का दावा ठोक देते हैं उन्हें अपमानित करके, उन घरों के बेटों को ये सब विरासत में मिल जाता है और इस परम्परा को वो अपनी अगली पीढ़ी को दे देते है और वो अगली, इस तरह ये पीढ़ी दर पीढ़ी ‘खाज’ की तरह बढ़ता ही रहता है, इस तरह तो ये बुराई कभी खत्म ही नही होगी ! इसे रोकना होगा | जब घर के पुरुष अपने घर की स्त्रियों का सम्मान करेंगे तभी वो दूसरों की बहन बेटियों का भी सम्मान कर पायेंगे और अपनी अगली पीढ़ी को भी ये बात सिखा पायेंगे |
हम (आधी आबादी) राजनेताओं से पूछते हैं कि भगवान ना करें कि ऐसी ही दुर्घटना उनकी बहु-बेटियों के साथ हो तब भी क्या वो यही कहेंगे कि
–“हो जाती है लड़को से गलती कभ-कभी ?
हम उन समाज के ठेकेदारों से पूछना चाहते हैं कि क्या ऐसी बर्बरता उनकी बहू-बेटियों के साथ हो तब भी वो यही कहेंगे कि
उस स्त्री का चरित्र ठीक नही था या उसने भड़काऊ कपड़े पहने थे, तभी ऐसी घटना घटी !!
सार्वजनिक मंचों या व्यास पीठ से कुछ ऐसा बोला जाना चाहिए कि समाज की बुराइयां खत्म हों, स्त्रियाँ निडर हो कर कहीं भी आ जा सकें | अपने घर के भीतर या बाहर निडर हो कर अपने ऊपर हो रहे अमानुषिक वर्ताव का विरोध कर सके, ये उनका भी दायित्व बनता है कि कुछ ऐसा बोलें कि अपराधी प्रवृत्ती वाले लोग भयभीत हों, कुछ भी ऐसा ना कहाँ जाय जिससे कि उनका हौसला बढ़े|

सबसे पहले समाज को स्त्रियों के प्रति अपनी सोच और नजरिया बदलना होगा | राजनीतिक स्तर के साथ-साथ पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर भी सुधार की जरुरत है | ऐसे लोगों (बलात्कारियों और तेज़ाब फैंकने वालों) का पारिवारिक, सामाजिक और राजनीतिक वहिष्कार होना चाहिए जिससे उन्हें भय हो कि उन्हें क़ानून से बचाने वाला कोई नही और किसी तरह अगर क़ानून से बच भी गया तो परिवार और समाज उसे नही अपनाएगा, ये भय होना बहुत जरूरी है |
क़ानून में भी ऐसे अपराधी को जल्द से जल्द और कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए; स्वच्छ भारत के साथ अपराध मुक्त भारत हो, हम यही उम्मीद करते हैं; पर काश .........ऐसा हो !!!!

छन्न पकैया छन्न पकैया, ये कैसी आजादी |
सिसक-सिसक कर रोती अब भी, क्यूँ आधी आबादी ||

मीना पाठक

(पिछले वर्ष के कुछ तीखे शब्द और धटनाओं पर आधारित लेख | ईश्वर करें इस वर्ष ये घटनाएं ना दोहराई जाय)
 



Friday, December 26, 2014

स्त्री !

बसंती हवा  
गुलाबी शरद
गुनगुनी धूप सी,
शीतल जल 
पवन में सुगंध
कोयल के कूक सी,
कमलदल
सतरंगी रश्मियां 
शशि किरन सी,
बौराई भँवर
कल-कल सरिता
अटल  शिखर सी,
ऊर्वशी
शकुंतला
यशोधरा सी, 
स्त्री !!
जननी, तरणी,
संरक्षणी
सम्पूर्ण प्रकृति की संचालिनी
फिर भी !!
अबला, उपेक्षिता,
तिरष्कृता,
पराश्रिता सी
क्यूँ ??

Saturday, December 13, 2014

पापा की याद

"पापा आप कहाँ चले गये थे मुझे छोड़ कर" अनन्या अपने पापा की उंगुली थामे मचल कर बोली
"मैं तारों के पास गया था, अब वही मेरा घर है बेटा" साथ चलते हुए पापा बोले
"तो मुझे भी ले चलो न पापा तारो के पास !" पापा की तरफ़ देख कर बोली अनन्या
"नहीं नहीं..तुम्हें यहीं रह कर तारा की तरह चमकना है" पापा ने कहा
"पर पापा मैं आप के बिना नही रह सकती, मुझे ले चलो अपने साथ या आप ही आ जाओ यहाँ"
"दोनों ही संभव नही है बेटा..पर तुम जब भी मुझे याद करोगी मुझे अपने पास ही पाओगी,कभी हिम्मत मत हारना, उम्मीद का दामन कभी ना छोड़ना,खूब मन लगा कर पढ़ना, आसमां की बुलंदियों को छूना और धुवतारा बन कर चमकना बेटा, मैं हर पल तुम्हारे पास हूँ पर तुम्हारे साथ नही रह सकता |"
अचानक अनन्या की आँख खुल गई, सपना टूट गया, पापा उससे उंगुली छुडा कर जा चुके थे, उसकी आँखों में अनायास ही दो बूँद आँसू लुढक पड़े | आज एक मल्टीनेशनल कम्पनी में उसका इंटरव्यू था और रात उसे पापा की बहुत याद आ रही थी  |

मीना पाठक



Tuesday, December 9, 2014

यात्रा अंतर्मन की


सुरो आज अपने आप को रुई से भी हल्का महसूस कर रही है, एक अजीब सी खुशी और ऊर्जा का एहसास हो रहा है उसे जैसे अपनी जिंदगी की मंजिल पा गई हो | वो उड़ रही है इधर से उधर, अब उस पर कोई रोक-टोक या पाबंदी नही, वो अब कहीं भी आ जा सकती है, उड़-उड़ कर वो अपने घर मे मंडरा रही है ऐसा करने मे उसे बहुत आनंद आ रहा है |
थोड़ी देर बाद उसने देखा कि उसके पतिदेव उसे हिला कर जागा रहे हैं पर उसके शरीर मे कोई हलचल नही हो रही और अचानक ही घर मे कोहराम मच गया | बहुएं उसे जगाने का प्रयास कर रहीं हैं पर सुरो की नींद नही खुल रही | धीरे-धीरे घर मे भीड़ जुटने लगी, सुरो अपनी बहुओं को समझा रही है पर वो जैसे उनकी बात ही नहीं सुन पा रहीं |
पतिदेव को भी कह रही पर वो भी उसकी बात नही सुन रहे | सुरो परेशान है, वो तो सब को देख रही हैं, सुन रही है पर उनकी बात कोई नहीं सुन पा रहा है | क्या हो गया है सब को ? मेरा शरीर क्यूँ पड़ा है इस तरह ? वो कुछ भी समझ नही पा रही है | धीरे धीरे उनकी सब सहेलियां भी आ चुकी है, सब रो रहीं हैं | घर के बाहर पुरुषों की भीड़ लग गई और अन्दर महिलाओं की |
सुरो का शरीर बेड से उतार कर बहार जमीन पर एक चादर बिछा कर लिटा दिया गया है सभी वही बैठ गये
उसने देखा की उसकी सबसे प्यारी सखी रानी फूट फूट कर रो रही है | सब का रोना देख कर सुरो का अंतर्मन वेदना से दहल रहा था और वो किसी को भी समझाने मे असमर्थ थी | वो ये सोच कर परेशान थी कि उनका शरीर इस तरह से शांत क्यूँ है वो तो यहीं हैं फिर भी...........
पतिदेव भी रो-रो कर बेकल हो रहे हैं | सभी उन्हें समझाने मे लगे हैं, पर उनका रोना बंद नही हो रहा है | महिलाएं एक दूसरे से चर्चा कर रहीं हैं, सभी को उसके द्वारा किये गये कोई ना कोई कार्य याद आ रहा है, उसके हंसमुख, मिलनसार स्वभाव की चर्चा सभी कर रहीं हैं | धीरे-धीरे दोपहर हो गई कोई कब तक बैठा रहेगा, अपनी-अपनी संवेदनाएं दे कर सभी लोग  घर चले गये अब सिर्फ घर के ही लोग बचे हैं | सुरो के शरीर पास घूपबत्ती जला दी गई है, बहुए रो-रो कर बेदम हो कर वहीं बैठीं हैं | सुरो का बहुओं से बहुत लगाव था इन्हें रोता हुआ देख कर वो बहुत दुखी हो रही हैं | उन्होने ने देखा कि पतिदेव किसी से कह रहे हैं--
कल जायेगी, बेटों के आने के बाद |
शाम होते ही कुछ लोग गाड़ी से बर्फ की बड़ी सी सिल्ली ले कर आए हैं | अब सुरो का शरीर बर्फ के सख्त गद्दे पर लिटा दिया गया है |
धीरे-धीरे सभी रिश्तेदार पहुँच रहे हैं, हर एक के आने पर एक बार फिर से हृदयविदारक दृश्य देख रही है सुरो | रात मे सास ससुर रिश्तेदारों से बात कर रहे हैं बहुएं और पतिदेव निढाल हैं | आज पहली बार अपने सास-ससुर के मुंह से अपनी तारीफ़ सुन कर बहुत गदगद है सुरो | वो तो दुनिया की सबसे अच्छी बहू थी अपने सास-ससुर की निगाह मे | बीच-बीच मे पतिदेव भी उसके त्याग और संघर्ष को बता रहे हैं |
जीवन के इस मोड़ पर क्यूँ छोड़ कर चली गई ये कह कर रो पड़ते हैं |
सुरो सोचने लगी, ये लोग जो आज बोल रहे हैं वो सच है या ये लोग जो कल तक बोलते थे वो सच था ??
सुरो कराह उठी इतने दोहरे व्यक्तित्व के कैसे हो सकते हैं ये लोग ?
वो शायद अब जीवित नही हैं, कई बार सुना था कि मरने के बाद आत्मा शारीर के आस-पास ही मंडराती रहती है, तो क्या वो ....... ????
अब सुरो समझ गई थी कि उनकी आत्मा शरीर छोड़ चुकी है | रातभर वो वहीं अपने बहुओं के पास बैठी रही और अपनी तारीफ़ सुनती रही पाति और सास ससुर के मुख से, पर हर तारीफ़ के बोल उसकी आत्मा कचोट रहे थे | अपने बेटे को सीने से लगाये बैठे थे वे लोग, कभी यही लोग शरीर भीतर मेरी आत्मा कुचलते रहे और आज भी वही कर रहे हैं | सुरो तो कब का मर जाना चाहती थी पर अपने बच्चों के लिए जीती रही और अब, जब अपने पोते-पोतियों के साथ हँसना चाहती थी, खेलना चाहती थी, तब आत्मा ने शरीर छोड़ दिया, ना तब कुछ वश मे था और ना ही कुछ आज उसके वश मे है | पति को रोते हुए देख कर कभी तो उसे हँसी आ रही थी तो कभी उसका दिल नफरत से भर रहा था | इसी आदमी ने जानवरों से भी बद्तर वर्ताव किया था, मेरे शरीर को कितनी बार काले नीले रंगों से भर दिया था, उसकी पीड़ा आज भी महसूस करती हूँ और आज सब को दिखाने के लिए रोना पीटना ...... हुंह ,,,
नफरत है तुम से बुदबुदाई सुरो | पर उनकी आवाज कोई नही सुन पाया |
सुबह हो गई है सुरो ने देखा कि सामने वाली भाभी जग मे चाय ले कर आयीं हैं उन्होंने सब को जबरजस्ती चाय पिलाई और थोड़ी देर बैठ कर चली गयीं | करीब आधे घंटे बाद एक कार आ कर रुकी, दरवाजा खुला और बेटे दौड़ कर माँ के शरीर से लिपट गये एक बार फिर से दृष्य हृदयविदारक हो गया ..रोने की आवाज सुन कर फिर से भीड़ जुटने लगी, कई लोगों ने बेटों को मेरे शरीर से अलग किया, पर वो किसी से भी सम्भल नहीं पा रहे थे, अपने-अपने पति को यूँ रोते देख कर बहुएं भी फिर से बिलख कर रो पड़ीं | सुरो तड़प रही थी बेटों को हृदय से लगाने के लिए पर कुछ भी नहीं कर पा रही थी, बेटों को बिलखता देख हर एक के आँख मे आँसू हैं,
अब जाने की तैयारी हो रही है बाहर कुछ लोग बांस का बिछौना तैयार कर रहे है....रानी बहुओं को समझती जा रही है और बहुएं अपनी सासू माँ को विदा करने के लिए तैयार कर रहीं हैं |
 ऐसा लग रहा है जैसे सुरो सज-धज कर सो रही हो ..लाल जरीवाली साड़ी जो बड़े बेटे ने अपनी पहली तनख्वाह पर खरीद कर दी थी सुरो को, उसे याद आ रहा है, उस दिन वो कितनी खुश हुई थी बेटे से इतनी महँगी साड़ी पा कर पर पहनने मे हिचकती थी क्यों कि साड़ी सुर्ख लाल रंग की थी इस लिए उसे सम्भाल कर रख दी थी | वही साड़ी बहुओं ने पहना दी थी, लाल बिन्दी, लाल चूड़ियाँ, महावर नये बिछुए सब पहनने के बाद सिन्दूर लगाने के लिए पतिदेव को लाया गया उनके कुछ मित्रों ने उन्हें सम्भाल रखा था | बहू ने सिन्होरा खोल कर आगे बढ़ा दिया पतिदेव ने दुबारा सुरो की मांग भर दी और सुरो सोचने लगी कि ये सिन्दूर किसने बनाया ? ये एक चुटकी सिन्दूर किसी के जीवन का फैसला कर देता है, फैसला अच्छा हुआ तो जीवन सफल और गलत हुआ तो जीवन को बोझ की तरह ढोना पड़ता है अपने ही कन्धों पर |
अचनक कुछ लोगों ने झट से सुरो के शरीर को उठा कर बांस के बिछौने पर लिटा दिया, एक बहू दौड़ कर भीतर से चश्मा उठा लाई....सुरो को चश्मा लगा कर बोली --
मम्मी चश्मे के बिना नहीं रह पातीं सभी लोग फूट फूट कर रो पड़े ..हिचकियों और रोने-बिलखने की आवाज से वातावरण ग़मगीन हो गया था..झट से दोनों बेटों और पतिदेव ने बांस का बिछौना उठा लिया और चल पड़े, सब कुछ पीछे रह गया |
कुछ महिलाएँ बतिया रहीं थीं
कितनी भागमान थी सुरो, पति और बेटों के कंधे पर चढ़ कर विदा हो रही है |
सुरो सब कुछ देख-सुन रही है | उसे जहाँ ले जाया गया वहाँ भी एक लकड़ी की सेज तैयार है जिस पर उसे लिटा दिया गया है ऊपर से लकड़ियाँ रख कर पतिदेव के हाथ से उनमे आग लगा दी गई लकडियाँ धूं धूं कर जल उठीं, बेटे माँ को जलता देख तड़प उठे, सुरो कराह उठी ..आह्ह !!! आखिर इन्होने ने मुझे राख मे तब्दील कर ही दिया, मेरा पूरा जीवन
होम हो गया !


अचानक गर्मी से पूरा शरीर तपने लगा रोम छिद्रों से पसीने की बूंदे रिसने लगीं और सुरो की आँख खुल गई | लाइट चली गई थी पंखा बंद होने की वजह से नींद टूट गई, सुरो भौचक्की हो अपने आस-पास देख रही थी, समझने की कोशिश कर रही थी कि वो स्वप्न देख रही थी या सच मे वो जीवित नही है | वो अपने अन्दर कुछ कमजोरी सी महसूस कर रही थी, उसने  बहू को आवाज दे कर पानी माँगा ये देखने के लिए जी वो जिन्दा है भी कि नही | बहू पानी ले आई, सुरो ने बहू को अपने सीने से लगा लिया बहू चौंक पड़ी क्या हुआ मम्मी जी ? सुरो की आँखों से आँसू निकल पड़े अपनी अंतिम यात्रा से वापस आ रही हूँ | बहू उनका मुंह देखने लगी, सुरो ने आँसू आँचल में समेट लिया | 

मीना पाठक
कानपुर-उत्तर प्रदेश    

शापित

                           माँ का घर , यानी कि मायका! मायके जाने की खुशी ही अलग होती है। अपने परिवार के साथ-साथ बचपन के दोस्तों के साथ मिलन...